भारत का प्रायद्वीपीय पठार(Peninsular Plateau in Hindi): भारत के भौतिक विभाग में विभाजित प्रायद्वीपीय पठार मुख्य रूप से क्रिस्टलीय, आग्नेय, और कायांतरित चट्टानों से निर्मित है। यह गंगा और यमुना के दक्षिण भाग में स्थित विशाल भूखंड है। इसकी औसत ऊँचाई 600 से 900 मीटर के बीच है। इस पठार का क्षेत्रफल लगभग 16 लाख वर्ग किलोमीटर है, जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 43% हिस्सा समेटे हुए है। इस क्षेत्र की अपवाह प्रणाली में नर्मदा, कृष्णा, कावेरी, गोदावरी और ताप्ती नदियाँ शामिल है।
भारत का प्रायद्वीपीय पठार
प्रायद्वीपीय पठार प्राचीन ’गोंडवाना भूमि का भाग’ है। यह गोंडवाना भूमि के टूटने एवं अपवाह के कारण बना था। इसकी आकृति त्रिभुजाकार है, जिसका आधार उत्तर में व शीर्ष दक्षिण की ओर है। यह राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले से कन्याकुमारी/कुमारी अंतरीप (तमिलनाडु) तथा गुजरात से पश्चिम बंगाल तक 16 लाख वर्ग किमी. में फैला हुआ है, जो लगातार न होकर बीच में टूटा हुआ है। प्रायद्वीपीय पठार का विस्तार दक्षिणी पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड दक्षिणी बिहार, महाराष्ट्र, उड़ीसा, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, केरल व तमिलनाडु आदि में है।
प्रायद्वीपीय पठार की विशेषताएं | Features of Peninsular Plateau in Hindi
- यह पुराने क्रिस्टलीय, आग्नेय तथा रूपांतरित शैलों से बना है।
- भारत की सबसे बड़ी भौगोलिक इकाई है।
- यह सबसे प्राचीनतम भूखण्ड है।
- दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठारी प्रदेश का ढ़ाल लहरदार एवं दिशा उत्तर पश्चिम से दक्षिण पूर्व या पश्चिम से पूर्व की ओर है।
- इसकी औसत ऊँचाई 600-900 मी. है।
- प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर-पश्चिम में अरावली पर्वतमाला व दिल्ली, पूर्व में राजमहल पहाड़ियाँ, पश्चिम में गिर पहाड़ियाँ व दक्षिण में इलायची (कार्डामम) पहाड़ियाँ स्थित है।
- प्रायद्वीपीय पठार का निर्माण ज्वालामुखी के लावा के मैग्मा से हुआ है, अतः पृथ्वी के भूगर्भ से लोहा बाहर आने से इस मिट्टी का रंग काला होता है अतः सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय पठार पर काली मृदा पाई जाती है, जिसे ’दक्कन ट्रेप’ के नाम से जाना जाता है।
प्रायद्वीपीय पठार का भौगोलिक विभाजन:
प्रायद्वीपीय पठार को दो भागों में विभाजित किया जाता है –
- मालवा का पठार
- दक्कन का पठार/दक्षिण का पठार

1. मालवा का पठार
- नर्मदा नदी के उत्तर में प्रायद्वीपीय पठार का वह भाग जो कि मालवा के पठार के अधिकतर भागों पर फैला है, इसे मध्य उच्च भूमि के नाम से जाना जाता है।
- यह दक्कन पठार की उत्तरी सीमा पर स्थित है।
- इसके पूर्वी भाग में बुंदेलखण्ड/बघेलखण्ड स्थित है और इसका पूर्वी विस्तार राजमहल की पहाड़ियाँ एवं छोटा नागपुर पठार तक है।
- इसका अधिकांश विस्तार मालवा पठार क्षेत्र में है।
- इसके उत्तर-पश्चिम में अरावली पर्वत शृंखला और दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत शृंखला है।
- इस क्षेत्र में बहने वाली नदियाँ – चंबल, सिंध, बेतवा तथा केन दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की तरफ बहती है।
- मध्य उच्च भूमि पश्चिम में चौड़ी है, लेकिन पूर्व में संकीर्ण है।
- इसकी औसत ऊँचाई 700-1000 मीटर है।
- इसका ढाल पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर है।
- मध्य उच्च भूमि की उत्तरी सीमा पर विंध्य पर्वत शृंखला, दक्षिण सीमा पर सतपुड़ा पर्वत और पश्चिमी सीमा पर अरावली पर्वत है।

- मालवा का पठार सर्वाधिक ’अवनलिका अपरदन’ से प्रभावित पठार है, जो बेसाल्ट और ग्रेनाइट चट्टानों से निर्मित है।
- मालवा पठार का निर्माण ज्वालामुखी लावा से हुआ है।
- अरावली तथा विंध्याचल के मध्य मालवा का पठार स्थित है।
- यह मुख्यतः दक्षिण-पूर्वी राजस्थान तथा मध्य प्रदेश में फैला हुआ है।
- इसका ढ़ाल सामान्यतः उत्तर से पूर्व की ओर है।
- मालवा के पठार के उत्तर में ’बुन्देलखण्ड’ तथा उत्तर-पूर्व में ’बघेलखण्ड का पठार’ स्थित है।
- मालवा के पठार पर सर्वाधिक अवनलिका अपरदन करने वाली प्रमुख नदी चम्बल है। इसकी अपरदित भमि को ’उत्खात भूमि’ या ’बीहड़’ कहते हैं।
- मालवा पठार पर काली मिट्टी पाई जाती है।
- मालवा पठार से चम्बल, बेतवा और कालीसिंध नदियाँ निकलती है, जो उत्तर की ओर प्रवाहित होती है।
1. छोटा नागपुर का पठार
- छोटा नागपुर का पठार झारखण्ड, पश्चिम बंगाल व उड़ीसा राज्य में फैला हुआ है।
- इसकी औसत ऊँचाई 750 मी. है।
- करोड़ो वर्ष पूर्व ज्वालामुखी की क्रिया में मेग्मा के दबाव से यह पठार ऊपर उठकर गुम्बदाकार पठार में बदल गया जिसके ऊपर वर्तमान में झारखण्ड राज्य बसा हुआ है, यही कारण है कि झारखण्ड खनिजों के भण्डार के उत्पादन की दृष्टि से समृद्ध राज्य है।
- छोटा नागपुर का पठार भारत का सर्वाधिक खनिज सम्पन्न क्षेत्र है, इसी कारण इसे ’भारत के खनिजों का अजायबघर’ कहा जाता है।
- छोटा नागपुर पठार से दामोदर और स्वर्ण रेखा नदियाँ निकलती है।
- दामोदर नदी छोटा नागपुर के पठार की प्रमुख नदी है, जो इस पठार को दो भागों में बाँटती है। उत्तरी भाग ’हजारी बाग का पठार’ व दक्षिणी भाग ’राँची का पठार’ कहलाता है। यहाँ गोंडवाना युग का कोयला भण्डार है, जो सम्पूर्ण भारत का 3/4 भाग कोयला प्रदान करता है।
- छोटा नागपुर का पठार की सबसे ऊँची चोटी ’पारसनाथ’ (1365 मी., झारखण्ड) है।
2. अरावली पर्वतमाला
- अरावली पर्वतमाला विश्व की सबसे प्राचीनतम वलित पर्वत श्रेणी है।
- अरावली एक अपशिष्ट पर्वत शृंखला है।
- इसका निर्माण 65 करोड़ वर्ष पूर्व ’प्री-केम्ब्रीयन युग/धारवाड़ युग’ में हुआ। इसे ’अरब सागर की बेटी’ कहा जाता है।
- अरावली पर्वतमाला की लम्बाई 692 किमी. है। इसकी औसत ऊँचाई 930 मीटर है।
- इसका विस्तार गुजरात, राजस्थान व दिल्ली में मिलता है।
- अरावली पर्वतमाला का विस्तार गुजरात के पालमपुर से लेकर रायसीना हिल्स, नई दिल्ली तक है।
- अरावली पर्वतमाला का सबसे ऊँचा शिखर ’गुरु शिखर’ (1722 मीटर) है। जो राजस्थान के माउण्ट आबू में स्थित है।
- भारत में यह पर्वत श्रृंखला अरब सागर से आने वाले मानसून के समानांतर चलती है इसलिए इस पर्वतमाला के पश्चिम भाग में वर्षा कम होती है।
- यहाँ धातु खनिज – सीसा, जस्ता, चाँदी, लौह अयस्क, ताँबा आदि मिलते है।
3 . विंध्याचल पर्वतमाला
- विंध्याचल पर्वत श्रेणी गुजरात से शुरू होकर मध्य प्रदेश, बघेलखण्ड, दक्षिणी उत्तर प्रदेश में होती हुई ’सासाराम’ (बिहार) तक फैली हुई है।
- यह ब्लॉक पर्वत शृंखला है।
- विंध्याचल पर्वत श्रेणी मालवा पठार के दक्षिण में है।
- इसकी लम्बाई 1200 वर्ग किमी. एवं औसत ऊँचाई 450-600 मीटर है।
- इसका पूर्वी विस्तार बिहार में ’भारनेट व कैमूर’ पहाड़ियों के रूप में मिलता है।
- विंध्याचल पर्वतमाला नर्मदा नदी के उत्तर में उसके समानान्तर पश्चिम से पूर्व की ओर विस्तृत है, जो मुख्यतः ’बालू के लाल पत्थर’ व ’क्वार्टज’ से निर्मित है।
- यह श्रेणी उत्तर भारत की नदियों व दक्षिणी भारत की नदियों के मध्य जलविभाजक का भी कार्य करती है अर्थात् यह हिमालय व प्रायद्वीपीय पठार के अपवाह तन्त्र को अलग करती है।
- विंध्याचल की सबसे ऊँची चोटी ’कालूनर चोटी/गुडबिल चोटी’ है।
- विन्ध्याचल पर्वत के दक्षिण में नर्मदा भ्रंश घाटी है। नर्मदा भ्रंश घाटी के दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत है।
4. सतपुड़ा पर्वत
- यह पर्वतमाला ’नर्मदा व ताप्ती’ नदियों के मध्य विन्ध्यांचल पर्वत श्रेणी के नीचे स्थित बेसाल्ट व ग्रेनाइट चट्टानों से निर्मित पर्वत श्रेणी है।
- यह पर्वत श्रेणी गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व झारखण्ड में फैली हुई है।
- इसकी लम्बाई 900 किमी. एवं औसत ऊँचाई 762 मी. है।
- दो भ्रंश घाटियों के बीच स्थित सतपुड़ा पर्वत को ’ब्लॉक पर्वत’ कहते हैं।
- सतपुड़ा पर्वत एक ’ब्लॉक पर्वत’ है, जो पश्चिम से पूर्व की ओर तीन पहाड़ियों के रूप में विस्तृत है – राजपीपला, महादेव, मैकाल।
- सतपुड़ा पर्वत का पूर्वी विस्तार ’महादेव मैकाल’ व ’राजमहल पहाड़ियों’ के रूप में मिलता है।
- सतपुड़ा की सर्वाेच्च चोटी ’धूपगढ़’ (मध्यप्रदेश, 1350 मीटर), ’महादेव पहाड़ी (मध्यप्रदेश) पर पंचमढ़ी’ (हिल स्टेशन) में स्थित है। दूसरी सबसे ऊँची चोटी ‘अमरकंटक’ 1066 मीटर ऊँची है, जो मैकाल श्रेणी का सर्वाेच्च शिखर है, जो नर्मदा व सोम नदी का उद्गम स्थल है।
- प्रायद्वीपीय भारत की सबसे ऊँची चोटी – अनाईमुड़ी (2695 मी.)
- प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी सबसे ऊँची चोटी – दोदोबेटा (2637 मी.)
- भारत की सबसे दक्षिणतम पहाड़ी – कार्डेमम पहाड़ी
- पश्चिमी घाट की सबसे ऊँची चोटी – अनाईमुड़ी (2695 मी.)
- पूर्वी घाट की सबसे ऊँची चोटी – महेन्द्रगिरी (1501 मी.)
2. दक्कन का पठार
- दक्कन के पठार को ’दक्षिण का पठार’ भी कहा जाता है।
- नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित पठारी प्रदेश समग्र रूप से ‘दक्कन का पठार’ कहलाता है।
- दक्कन पठार की अवस्थिति सतपुड़ा पर्वत, पश्चिमी घाट पर्वत और पूर्वी घाट पर्वत के मध्य है।
- दक्षिण का पठार एक त्रिभुजाकार भूभाग है।
- इस पठार पर ’मैसोजोइक कल्प’ के ’क्रिटेशियस काल’ में ज्वालामुखी उद्गार के फलस्वरूप लावा का प्रभाव हुआ, जिसे ’दक्कन ट्रैप’ कहते हैं।
- इसका मुख्य विस्तार महाराष्ट्र राज्य में है, तो इस पठार में गोदावरी एवं उसकी सहायक नदियाँ बहती हैं।
- उत्तर से दक्षिण में इसकी लम्बाई 1700 किमी. है और पश्चिम से पूर्व की तरफ लम्बाई 1400 किमी. है।
- यह पठार पश्चिम में ऊँचा एवं पूर्व की ओर कम ढाल वाला होता है।
- बेसाल्टिक लावा से निर्मित होने के कारण काली मृदा से सम्पन्न पठार है।
- दक्कन के पठार के स्थान पर लावा के जमाव से काली मिट्टी बनी है, काली मिट्टी के गुणों के कारण इसमें सिंचाई, जुताई व खाद डालने की आवश्यकता कम पड़ती है।
- दक्कन के पठार के उत्तर में सतपुड़ा शृंखला और पूर्व में महादेव, कैमूर की पहाड़ी तथा मैकाल शृंखला स्थित है।
- इस पठार का एक भाग उत्तर-पूर्व में भी है इसे स्थानीय रूप से मेघालय, कार्बीएगलौंग पठार, उत्तरी कचार पहाड़ी के नाम से जाना जाता है।
- यह पठार एक भ्रंश के द्वारा छोटा नागपुर पठार से अलग हो गया है।
- इसके पश्चिम से पूर्व की ओर तीन महत्त्वपूर्ण शृंखलाएँ – गारो, खासी तथा जयन्तियां हैं।
- दक्षिण के पठार के पूर्वी एवं पश्चिमी सिरे पर पूर्वी घाट एवं पश्चिमी घाट स्थित है।
1. पश्चिमी घाट
- पश्चिमी घाट उत्तर में ताप्ती नदी से दक्षिण में कैमोरिन (कन्याकुमारी) तक यह पर्वतमाला 1600 किलोमीटर की लम्बाई में विस्तृत है।
- पश्चिमी घाट पर्वत हिमालय के बाद भारत में दूसरा सबसे लम्बा पर्वत है।
- पश्चिमी घाट की चौड़ाई 50 से 80 किमी. तथा औसत ऊँचाई 900 से 1,600 मीटर है।
- पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट की अपेक्षा ऊँचे हैं। पश्चिमी घाट पर्वत क्रमबद्ध है।
- पश्चिमी घाट की ऊँचाई, उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ती जाती है।
- पश्चिमी घाट के दक्षिणी हिस्से में पायी जाने वाली चट्टानें प्राचीन है जो ’नीस’ (ग्रेनाइट) शिष्ट ’चरको नाइट’ प्रकृति की है।
- पश्चिमी घाट का पश्चिमी भाग कगारनुमा अर्थात् तीव्र ढ़ाल वाला है।
- पश्चिमी तट पर बहने वाली नदियाँ अपने तीव्र वेग के कारण अरब सागर में गिरते समय ’एश्चुरी’ का निर्माण करती है।
- पश्चिमी घाट की सबसे ऊँची चोटी ’अनाईमुड़ी’ (2695 मी.) है।
- पश्चिमी घाट पर्वत को ’सह्याद्री’ भी कहते है।
पश्चिमी घाट का ढ़ाल अरब सागर की ओर (पश्चिम) तीव्र एवं पूर्व की ओर ’बंगाल की खाड़ी’ की ओर मन्द है, जिसे मुख्य रूप से सहयाद्री को तीन भागों में बाँटा गया है –
(A) उत्तरी सहयाद्री – इसका विस्तार ताप्ती नदी से माल प्रवाह नदी के मध्य पाया जाता है। इस भाग की सर्वाेच्च चोटी ’कलसुबाई’ (महाराष्ट्र) 1646 मीटर है, जहाँ से ’गोदावरी नदी’ की उत्पत्ति होती है।
(B) मध्य सहयाद्री – यह पर्वतमाला माल प्रवाह नदी से ’पालघाट दर्रे’ तक पायी जाती है। इसकी सर्वाेच्च चोटी ’कुद्रेमुख’ (कर्नाटक) 1892 मीटर है। पुष्प गिरि मध्य सहयाद्री का दूसरा सर्वाेच्च शिखर है, जिसके पास से ही कावेरी नदी निकलती है।
(C) दक्षिण सहयादी – यह पर्वतमाला ’पालघाट दर्रे’ से कन्याकुमारी’ तक विस्तृत है। इसका निर्माण मूल रूप से आर्कियन चट्टानों से हुआ है।
पश्चिमी घाट के दर्रे –
पश्चिमी घाट पर्वत एक लगातार पर्वत है, जिसमें आवागमन के लिए केवल चार दर्रे पाये जाते हैं –
(1) थाल घाट का दर्रा (महाराष्ट्र) – इस दर्रे से मुम्बई से नासिक जाने का रास्ता गुजरता है, जो उत्तरी भारत को पूर्वी भारत से जोड़ता है।
(2) भोर घाट का दर्रा (महाराष्ट्र) – इस दर्रे से मुम्बई से पुणे जाने का रास्ता गुजरता है।
(3) पाल घाट का दर्रा (केरल) – इस दर्रे से कोच्चि (केरल) से कोयम्बटूर (तमिलनाडु) जाने का रास्ता गुजरता है।
(4) शेनकोट्टा का दर्रा (केरल) – इस दर्रे से त्रिवेन्द्रम् (केरल) से मदुरई (तमिलनाडु) जाने का रास्ता गुजरता है।
2. पूर्वी घाट
- यह पर्वत श्रेणी प्रायद्वीपीय पठार के पूर्व में स्थित है, जिसका विस्तार महानदी की घाटी से दक्षिण में नीलगिरि की पहाड़ियों तक 1300 किमी. में है।
- इसकी उत्तर में औसत चौड़ाई 200 किमी. व दक्षिण में 100 किमी. तथा औसत ऊँचाई 600 मी. है।
- पश्चिमी घाट एवं पूर्वी घाट नीलगिरि की पहाड़ियों में मिलते हैं।
- पूर्वी घाट, पश्चिमी घाट की तुलना में कम ऊँचा एवं खण्डित है।
- पूर्वी घाट के अधिक टूटे-फूटे होने के कारण प्रायद्वीपीय पठार की ढ़ाल का पूर्व की ओर होना है, जिस कारण कृष्णा, कावेरी, महानदी, गोदावरी जैसी अधिकांश नदियाँ पूर्व की ओर बहते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
- इसकी सबसे ऊँची चोटी महेन्द्रगिरि (उड़ीसा, 1500 मी.) है।
पूर्वी घाट में अनेक श्रेणियाँ पाई जाती है –
- नीलगिरि (तमिलनाडु)
- महेन्द्रगिरी (उड़ीसा)
- पालकोण्डा व नलकुण्डा (आंध्रप्रदेश)
- नल्ला मलाई (आंध्रप्रदेश)
- जावेदी (तमिलनाडु)
- मलकान गिरि (पश्चिम बंगाल)
- शेवरॉय (तमिलनाडु)
नीलगिरी पहाड़ियाँ
- नीलगिरी पहाड़ियों का विस्तार तमिलनाडु, केरल व कर्नाटक राज्य में स्थित है।
- पश्चिमी घाट एवं पूर्वी घाट को आपस में जोड़ने वाली नीलगिरि की पहाड़ियाँ पश्चिमी घाट पर्वत का ही भाग है।
- नीलगिरी की पहाड़ियाँ देश में प्रति हैक्टेयर चाय की सर्वाधिक उत्पादकता एवं चंदन के वनों के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ सर्वाधिक टोडा जनजाति निवास करती है।
- प्रसिद्ध पर्यटक स्थल ’ऊटकमंडल (ऊटी)’ तमिलनाडु में नीलगिरी पहाड़ियों पर है।
- नीलगिरी की सबसे ऊँची चोटी ’डोडाबेट्टा’ है, जिसकी ऊँचाई 2623 मीटर है। ’डोडाबेटा’ दक्षिण भारत की दूसरी सबसे ऊँची चोटी है।
- ये पहाड़ियाँ अत्यधिक जैव विविधता और घने जंगलों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ 200 सेमी. से अधिक वर्षा होती है।
- नीलगिरी पहाड़ियों पर 1500 मी. की ऊँचाई पर स्थित सदाबहार वनों को ’शोलास वन’ कहा जाता है।
- केरल का प्रसिद्ध सदाबहार वन ’साइलैंट वैली’ भी नीलगिरी पहाड़ियों पर है।
भारत के प्रमुख पठार | Major plateaus of India in Hindi
- कर्नाटक या मैसूर का पठार
- दंडकारण्य पठार
- तेलंगाना का पठार
- मेघालय पठार/शिलांग पठार
- बुंदेलखण्ड का पठार
- बघेलखण्ड पठार
- लावा का पठार
- छत्तीसगढ़ निम्न भूमि पहाड़ियाँ
1. कर्नाटक या मैसूर का पठार
- यह सबसे प्राचीन पठार है।
- इसका विस्तार कर्नाटक राज्य में है।
- इस पठार की चट्टानें बहुत कठोर एवं प्राचीन है, जिसे ’समोच्य रेखा’ (समुद्रतल से समान ऊँचाई वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा) इसे दो भागों में बाँटती है। जिसका उत्तरी भाग मलानगिरी व दक्षिण भाग ’मैसूर का पठार’ कहलाता है।
2. दंडकारण्य पठार
- दंडकारण्य पठार का विस्तार उड़ीसा, छत्तीसगढ़, उत्तरी आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पूर्वी महाराष्ट्र में है।
- यहाँ उबड़-खाबड़ पठार है।
- दंडकारण्य का पठार मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ और ओडिशा में है।
- यहाँ की सर्वाेच्च चोटी महेन्द्रगिरि (1501 मी.) है।
3. तेलंगाना का पठार
- इसका विस्तार ’आन्ध्र प्रदेश’ में है, जिसको ’गोदावरी नदी’ दो भागों में विभक्त करती है।
- इस पठार का उत्तरी भाग पहाड़ी की, जबकि दक्षिणी भाग मैदानी विशेषता रखता है।
- इस पठार के साथ ही ’रॉयल सीमा का पठार’ आन्ध्रप्रदेश में ही स्थित है।
4. मेघालय का पठार
- शिलांग पठार को ’शिलांग का पठार’ भी कहा जाता है।
- यह प्रायद्वीपीय पठार का उत्तरी पूर्वी विस्तार कहलाता है, तो छोटा नागपुर पठार का ही आंशिक भाग है, जिस पर मेघालय राज्य बसा हुआ है, इसी कारण इसे मेघालय का पठार कहते हैं।
- इसी के विस्तार को मेघालय में ’शिलांग का पठार’ व असम में ’कार्बी एगलौंग का पठार/उत्तरी कचार पहाड़ियाँ’ भी कहा जाता है।
- यह प्राचीन समय में प्रायद्वीपीय पठार से सतत् रूप से जुड़ा हुआ था, परन्तु कालान्तर में अधोभ्रंशन की क्रिया (नदी के बहाव से कटाव) के कारण इनके मध्य अन्तराल आ गया इस अन्तराल को ’राजमहल गारो गैप/माल्दा गैप’ कहते हैं।
- इसको गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों ने अपने जलोढ़ निक्षेपों से भर दिया है।
- शिलांग पठार की सबसे ऊँची चोटी ’नोकरेक’ (1961 मीटर) है। यह चोटी गारो पहाड़ियों के अंतर्गत स्थित है।
- यहाँ कैम्ब्रियन पूर्व की टर्शियरी क्रम की अवसादी चट्टाने पाई जाती है।
- मेघालय पठार के पश्चिमी सिरे पर गारो पहाड़ियाँ (औसत ऊँचाई 900 मी.) तथा पूर्वी सिरे पर खासी, जयंतियां या मिकिर व रेग्मा पहाड़ियाँ पाई जाती है।
5. लावा का पठार
- ताप्ती नदी के दक्षिण में 5 लाख वर्ग किमी. के क्षेत्रफल में यह लावा का पठार मुख्यतः महाराष्ट्र व दक्षिणी पूर्वी गुजरात राज्यों में फैला हुआ है।
- लावा के पठार का निर्माण क्रिटेशियसशक में ज्वालामुखी उद्भेदका के फलस्वरूप बैसिक या पैट्रिक लावा के जमने से हुआ था।
- लावा के पठार से निर्मित मिट्टी काली मिट्टी है, जो कपास की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
6. बुंदेलखण्ड का पठार
- बुंदेलखण्ड का पठार उत्तर-प्रदेश व मध्य प्रदेश में फैला है।
- यह पठार ग्रेनाइट एवं नीस से निर्मित है।
- यहाँ की जलवायु अर्द्धशुष्क है।
- यह लहरदार क्षेत्र है। यह क्षेत्र कृषि योग्य नहीं है।
- यह पठार यमुना की सहायक नदियों द्वारा किये गये अवनलिका अपरदन के कारण बनाये गये बीहड़ और उत्खात स्थलाकृतियों के लिए चर्चित है।
7. छत्तीसगढ़ निम्न भूमि पहाड़ियाँ
- यह मुख्य उड़ीसा के मध्य व पश्चिमी भाग में तथा छत्तीसगढ़ के दक्षिण में फैला हुआ है।
- इसका पश्चिमी निम्न भाग ’छत्तीसगढ़ का मैदान’ तथा पूर्वी भाग उड़ीसा में ’गृहजात की पहाड़ियाँ’ कहलाती है।
- यहाँ की सबसे ऊँची चोटी ’मलयगिरि’ (1185 मी., उड़ीसा) है।
8. बघेलखण्ड पठार
- बघेलखण्ड पठार का विस्तार उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश में है।
- यह पठार मैकाल श्रेणी के उत्तर में स्थित है।
- यह ग्रेनाइट, चूना पत्थर एवं बलुआ पत्थरों से निर्मित है।
- इस पठार के उत्तर मे सोन नदी का उद्गम होता है।
दक्षिण भारत के प्रमुख पर्वत | Major mountains of South India
दक्षिण भारत के प्रमुख पर्वत | |
नाम | अवस्थिति |
नीलगिरी पर्वत | केरल, तमिलनाडु |
अन्नामलाई पर्वत | केरल, तमिलनाडु |
कार्डामम पर्वत | केरल, तमिलनाडु |
शेवरॉय पर्वत | तमिलनाडु |
पालनी पर्वत | तमिलनाडु |
जवादी पर्वत | तमिलनाडु |
पालकोंडा पर्वत | आंध्र प्रदेश |
नल्लामलाई पर्वत | आंध्रप्रदेश, तेलंगाना |
वेलीकोंडा पर्वत | आंध्रप्रदेश |
निष्कर्ष :
आज के आर्टिकल में हमनें भारत का प्रायद्वीपीय पठार(Peninsular Plateau) के बारे में विस्तार से जानकारी शेयर की। हम उम्मीद करते है कि आप हमारे द्वारा दी गयी जानकारी से संतुष्ट होंगे। अगर फिर भी कोई त्रुटी या कोई भी इस टॉपिक से जुडी कुछ समस्या है, तो आप नीचे दिए कमेंट बॉक्स में लिखें। हम सीमित समय में आपका उत्तर देंगे …धन्यवाद
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उत्तर भारत का पर्वतीय प्रदेश
FAQs –
प्रश्न : 1 भारत की सबसे प्राचीन भू-आकृतिक संरचना कौन-सी है?
उत्तर – भारत की सबसे प्राचीन भू-आकृतिक संरचना प्रायद्वीपीय पठार है।
- प्रायद्वीपीय पठार कठोर शैलों का प्राचीन भूखण्ड है।
- यह त्रिभुजाकार है।
- इस पठार में अरावली जैसे प्राचीन वलन स्थित है।
- प्रायद्वीपीय पठार को ‘पठारों का पठार’ कहा जाता है।